Monday, 18 August 2025

न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9

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न्याय Class 5 Summary in Hindi

न्याय Class 5 Hindi Summary

न्याय का सारांश – न्याय Class 5 Summary in Hindi

यह पाठ एक नाटक है, जोकि सिद्धार्थ के जीवन की एक घटना से जुड़ा है। राजकुमार सिद्धार्थ अपने मित्र के साथ राजमहल के बाग में घूमते हुए प्रकृति के सौंदर्य एवं उसमें होने वाले परिवर्तनों पर चर्चा कर रहे होते हैं तभी एक घायल हंस आकाश से नीचे की ओर गिर रहा होता है। सिद्धार्थ हंस की चीख और धरती पर उसे गिरता हुआ देखकर आगे बढ़कर गोद में उठा लेता है।

वह देखता है कि उसके शरीर में तीर लगा है और खून बह रहा है। वह उसके शरीर से तीर निकालता है और स्नेह से उसे सहलाता है। तीर निकल जाने पर हंस को थोड़ा आराम मिलता है और वह राजकुमार सिद्धार्थ की गोद में चिपक जाता है।

न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 1

सिद्धार्थ स्नेह से उसके शरीर पर हाथ फेरता है और अपने मित्र को राजवैद्य से मरहम ले आने को कहता है। तभी वहाँ देवदत्त आता है और वह सिद्धार्थ से कहता है कि मैंने एक उड़ते हुए हंस को तीर मारकर नीचे गिराया था। वह इधर कहीं आया है।

मेरा लक्ष्य सध गया है, तुम यह बात गुरु जी को बताओगे न । सिद्धार्थ कहता है कि मैं गवाही दूँगा कि तुमने एक निर्दोष पक्षी को मारने का प्रयास किया है और इसका प्रमाण यह हंस है। देवदत्त अपना हंस वापस लेना चाहता है परंतु सिद्धार्थ उसे देने से मना कर देता है।

इसी समय सिद्धार्थ का मित्र उनके विवाद को सुलझाने के लिए उन्हें महाराजा के पास चलने की सलाह देता है । देवदत्त महाराजा के पास जाकर न्याय पाना चाहता है। महाराज सभा में सिद्धार्थ को बुलाकर पूरी बात जानते हैं और हंस देवदत्त को देने की बात कहते हैं क्योंकि उसने हंस का शिकार किया था। इसलिए हंस देवदत्त का है। सिद्धार्थ अपने पक्ष में मत देता है कि मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है।

न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 2

यह सुनकर सभा में सभी लोग प्रसन्न होते हैं। महाराज भी स्नेह भाव से सिद्धार्थ को देखते हैं। देवदत्त गुस्से में आकर कहता है कि मैंने पहले हंस को मारा है इसलिए वह मेरा है। सिद्धार्थ प्रतिउत्तर में कहता है कि पहले मारा था तभी तो वह मेरी शरण में आया है। बिना मारे मेरी शरण में कैसे आता ? सभा में सभी लोग चकित होकर एक-दूसरे को देखते हैं।

महाराज मंत्री से कहते हैं कि समस्या जटिल है, इसका समाधान बताओ। मंत्री समाधान देते हुए हंस को आसन पर बैठाकर सिद्धार्थ और देवदत्त दोनों से उसे बुलाने को कहते हैं । देवदत्त के पुकारने पर हंस पंख फड़फड़ाकर डर से चीखता है और सिद्धार्थ के पुकारने पर उसकी गोद में चिपक जाता है। मंत्री ने कहा कि हंस ने स्वयं स्पष्ट कर दिया कि वह सिद्धार्थ के पास जाना चाहता है। महाराज यह देखकर न्याय करते हुए कहते हैं कि हंस राजकुमार सिद्धार्थ के पास ही रहेगा। इस न्याय पर सभा में हर्ष और उल्लास से जय-जयकार होती है।

न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 3

न्याय शब्दार्थ –

राज-उद्यान – राजा का बगीचा,
लालिमा – लाल रंग की आभा या चमक,
नेपथ्य – परदे के पीछे का स्थान,
वेदी – पूजा, यज्ञ या समारोह के लिए बनाया गया ऊँचा चबूतरा,
व्याकुल – बेचैन,
अचरज – आश्चर्य,
नियत – निश्चित,
योगी – संत / महात्मा,
निर्दयी – दया भाव से हीन,
अनुराग – प्रेम,
निर्दोष – दोष रहित,
राजवैद्य – राज महल के वैद्य,
गवाही – बयान या साक्ष्य,
प्रमाण – सबूत,
तिलमिलाकर – व्याकुल / बेचैन होकर / छटपटाकर,
विवश – मज़बूर,
सुझाव – राय देना,
प्रतिहारी – दरबार के प्रवेश द्वार की रखवाली करने वाला,
आखेट – शिकार,
शरणागत – शरण में आया हुआ,
स्नेहपूरित – प्रेम से भरा हुआ,
स्तंभित – चकित / हैरान,
आसन – बैठने का स्थान,
उल्लास – आनंद / उमंग / खुशी।
मुहावरे – धौंस
जमाना – दबाव बनाना या डराना-धमकाना,
नेत्र सजल हो जाना – आँखों में आँसू आ जाना,
छाती से चिपकाना – स्नेहपूर्वक अपनाना / बहुत प्यार करना,
गरदन झुकाना – हार मान लेना / समर्पण कर देना,
नेकी और पूछ-पूछ – भलाई में संकोच या देरी नहीं करनी चाहिए ।

न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 5

Class 5 Hindi Chapter 9 Summary न्याय

पात्र परिचय

सिद्धार्थ – कपिलवस्तु के राजकुमार
शुद्धोदन – कपिलवस्तु के महाराजा
सखा सिद्धार्थ का मित्र
देवदत्त – सिद्धार्थ का चचेरा भाई
मंत्री – महाराजा का मंत्री
प्रतिहारी

पहला दृश्य

(रंगमंच पर राज-उद्यान का एक दृश्य। संध्याकाल। मंच पर लालिमा। किरणें चित्र बनाती हैं। पुष्प झूमते हैं। दूर नेपथ्य में वन से लौटती गायों का स्वर उठता हुआ। पक्षी विदा का गान गाते हैं। उद्यान में इस समय कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ प्रसन्न मन एक वेदी पर बैठे हैं। पास ही उनका एक सखा है। दोनों बातें कर रहे हैं।)
सिद्धार्थ – देखो मित्र! कैसा सुहावना समय है! कैसी शांति है! पक्षी लौट रहे हैं। वे अपने बच्चों से मिलने को व्याकुल हैं और गायें अपने बछड़ों को प्यार करने के लिए उतावली हो रही हैं।
(गायों के बछड़े-बछियों के रँभाने के स्वर उठते हैं।)
सखा – हाँ कुमार! सुनो, बछड़े कैसे स्नेह से पुकार रहे हैं। भला कुमार, वे कैसे जानते हैं कि यह समय उनकी माँओं के घर लौटने का है?
सिद्धार्थ – तुम्हारी बात तो ठीक है, पर मित्र, देखो न, जब भोजन का समय होता है तो हमें अपने आप भूख लग आती है।
सखा – हाँ कुमार! यह बात तो है। सोने के वक्त नींद भी आ जाती है।
सिद्धार्थ – ऐसा कैसे हो जाता है मित्र! बड़े अचरज की बात है।
सखा – अचरज तो है ही। देखो न, सूरज रोज सवेरे पूरब से निकलता है और शाम को पश्चिम में छिप जाता है।
सिद्धार्थ – और गरमी हर साल एक ही समय पर शुरू होती है। पानी भी हर साल नियत समय पर पड़ता है। ऐसा मालूम होता है कि हर वस्तु का एक स्वभाव होता है।
(पक्षियों के उड़ने की फड़फड़ाहट)
सखा – (ऊपर देखते हुए) हाँ, शायद यही बात है। अरे, अरे कुमार! ऊपर तो देखो, कैसे सुंदर पक्षी हैं।
सिद्धार्थ – (ऊपर देखते हुए) अरे मित्र, ये तो राजहंस हैं!
सखा – देखो, इकट्ठे उड़ते हुए ये कैसे अच्छे लगते हैं!
न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 6
सिद्धार्थ – सचमुच अच्छे लगते हैं। इनकी गरदन तो देखो, कैसे आगे को निकली हुई है, जैसे हवा में तैर रहे हैं।
सखा – और तुम क्या समझते हो कुमार! ये तैर तो रहे ही हैं। पानी पर चलना तैरना कहलाता है और हवा में चलना उड़ना।
सिद्धार्थ – (हँसकर) सच मित्र! तुम तो बहुत बातें जानते हो।
सखा – (हँसकर) पर तुमसे कम । गुरुजी कहते थे कि सिद्धार्थ पिछले जन्म में कोई योगी था।
सिद्धार्थ – (अचरज से) सच !
सखा – सच।
सिद्धार्थ – (ऊपर देखते-देखते) अच्छी बात है, मैं गुरुजी से पूछूंगा, योगी किसे कहते हैं… अरे मित्र, देखो ! यह क्या हुआ?
सखा – (घबराकर) क्या हुआ कुमार? अरे, यह किसने तीर चलाया?
सिद्धार्थ – (उतावला) और उस पक्षी को देखो… वह किस तेजी से धरती पर गिर रहा है।
सखा – (उसी तरह) वह घायल हो गया है। उसकी चीख तो सुनो… और बाकी पक्षी कैसे प्राण लेकर भाग रहे हैं!
(हंस की चीख। उसका भूमि पर आते हुए दिखाई देना। सिद्धार्थ आगे बढ़ते हैं। हंस उनकी गोदी में आ गिरता है। उसके शरीर में तीर लगा हुआ है और खून बह रहा है। कुमार करुणा से भरकर उसे सँभालते हैं।)
सिद्धार्थ – किस निर्दयी ने इस भोले-भाले पक्षी को घायल किया है? इसने किसी का क्या बिगाड़ा था?
सखा – यह सुंदर जो है, प्यारा जो लगता है।
सिद्धार्थ – (तीर निकालते हुए) क्यों, क्या सुंदर होना पाप है? क्या प्यारा लगना बुरा है?
माँ जब मुझसे कहती हैं – सिद्धार्थ, तुम कितने प्यारे हो, तो वे मुझे मारती नहीं बल्कि और भी ज्यादा प्यार करती हैं।
(तीर निकल जाने पर हंस सुख मानता है और बड़े अनुराग से कुमार की गोदी में चिपक जाता है। कुमार स्नेह से उसके शरीर पर हाथ फेरते हैं।)
सिद्धार्थ – क्या तुम्हारा मन इसको मारने को चाहता है?
सखा – (काँपता-सा) कुमार…
सिद्धार्थ – बताओ सखे! देखो तो, इसकी आँखें कितनी भोली हैं! इसको छूने में कितना स्नेह पैदा होता है!
सखा – (साँस खींचकर) नहीं कुमार! मैं इसको नहीं मार सकूँगा।
सिद्धार्थ – तुम ही नहीं मित्र ! कोई भी व्यक्ति, जिसके पास हृदय है, इन निर्दोष पक्षियों को नहीं मार सकेगा। लेकिन हाँ, तुम दौड़कर राजवैद्य से मरहम तो ले आओ।
सखा – अभी जाता हूँ।
(सखा जाता है। तभी कुमार देवदत्त तेजी से आते हैं।)
देवदत्त – अभी मैंने एक उड़ते हुए हंस को तीर मारकर नीचे गिराया था। मैंने अपनी आँखों से उसे गिरते देखा था। वह इधर कहीं आया है। (हँसकर) कुमार, मेरा लक्ष्य अब पूरी तरह सध गया है। कल मैं गुरुजी से कहूँगा तो वे कितने प्रसन्न होंगे! तुम मेरी गवाही दोगे न?
सिद्धार्थ – हाँ, मैं तुम्हारी गवाही दूँगा देवदत्त ! तुमने एक निर्दोष पक्षी को मारने का प्रयास किया है। इसका प्रमाण यह हंस है।
(सिद्धार्थ हंस को आगे बढ़ाते हैं। वह सहसा देवदत्त को देखकर चीखता है और सिद्धार्थ की गोद में दुबक जाता है।)
देवदत्त – अहा, मेरा हंस तुम्हारे पास है। लाओ, इसे मुझे दो।
सिद्धार्थ – क्यों दूँ?
देवदत्त – क्योंकि यह मेरा है।
न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 7
सिद्धार्थ – इसका प्रमाण ?
देवदत्त – प्रमाण! अरे प्रमाण क्या? मैंने इसे मारा है। इसके शरीर में मेरा तीर लगा है।
सिद्धार्थ – तुमने मारा है परंतु मैंने बचाया है … इसलिए यह हंस मेरा है। मैं तुम्हें नहीं दूँगा ।
देवदत्त – तुम्हें देना होगा सिद्धार्थ !
सिद्धार्थ – मैं नहीं दूँगा देवदत्त !
देवदत्त – तुम राजकुमार हो इसलिए धौंस जमाना चाहते हो, पर यह न भूलना, मैं भी राजकुमार हूँ।
सिद्धार्थ – (मुस्कुराकर) मैं कब कहता हूँ तुम राजकुमार नहीं हो। पर उससे क्या होता है? मैं यह हंस तुमको कभी नहीं दूँगा ।
(सखा का प्रवेश। वह अचरज से देवदत्त को देखता है। फिर हंस को मरहम लगाता है। हंस फड़फड़ाता है, गोदी में चिपक जाता है और फिर शांत हो जाता है।)
देवदत्त – कुमार, मैं हंस लेकर छोडूंगा। यह मेरा है।
सिद्धार्थ – देखा जाएगा।
देवदत्त (तिलमिलाकर) कुमार…
सिद्धार्थ – (शांत स्वर) ठीक है देवदत्त, मैं विवश हूँ।
सखा – कुमार, क्षमा करें, मैं कुछ निवेदन करूँ?
सिद्धार्थ – कहो मित्र !
सखा – आपका झगड़ा इस प्रकार नहीं सुलझ सकता। मेरा सुझाव है कि हमें महाराज के पास चलना चाहिए।
देवदत्त – (क्रोध से) मैं अभी महाराज के पास जाता हूँ। मैं उनसे तुम्हारी शिकायत करूँगा। मैं तब देखूँगा कि तुम मेरा हंस मुझे कैसे नहीं लौटाते !
सिद्धार्थ – आओ मित्र ! हम भी चलें। महाराज ही इसका निर्णय करेंगे।
सखा – चलो कुमार!
(दोनों जाते हैं। परदा गिरता है।)

दूसरा दृश्य

(मंच पर महाराज शुद्धोदन की सभा का दृश्य। मुख्य-मुख्य मंत्री अपने-अपने आसन पर बैठे हैं। महाराज का आसन कुछ ऊँचा। मंत्री इस समय कुछ निवेदन कर रहे हैं। इसी समय प्रतिहारी प्रवेश करता है। प्रणाम करके वह खड़ा हो जाता है। महाराज पूछते हैं।)
महाराज – क्या है प्रतिहारी?
प्रतिहारी- महाराज की जय हो ! राजकुमार देवदत्त आने की आज्ञा चाहते हैं।
महाराज – इस समय ! आने दो।
(प्रतिहारी लौटता है। मंत्री फिर कुछ कहने लगते हैं। कुछ ही क्षण में देवदत्त प्रवेश करते हैं।)
देवदत्त – मैं महाराज को प्रणाम करता हूँ।
महाराज – देवदत्त कहो, इस समय कैसे आए? क्या उद्यान में नहीं गए?
देवदत्त – महाराज, मैं आपसे न्याय चाहता हूँ। राजकुमार मेरा हंस नहीं देते।
महाराज – (मुस्कुराकर) राजकुमार सिद्धार्थ ?
देवदत्त – हाँ महाराज!
महाराज – उसने तुम्हारा हंस छीन लिया है?
देवदत्त – हाँ महाराज! मैंने उड़ते हुए हंस को अपने तीर से मारा था। वह राजकुमार के पास जा गिरा। वे अब उसे नहीं लौटाते । न्याय से वह मेरा है।
महाराज – कुमार अब कहाँ हैं?
देवदत्त – उद्यान में महाराज!
महाराज – प्रतिहारी, कुमार से कहो कि महाराज उन्हें याद करते हैं।
प्रतिहारी- जो आज्ञा महाराज!
(प्रतिहारी प्रणाम करके मुड़ता है कि तभी राजकुमार सिद्धार्थ हंस को गोद में लिए वहाँ प्रवेश करते हैं।)
सिद्धार्थ – सिद्धार्थ आपको प्रणाम करता है महाराज !
सखा – मैं भी महाराज को प्रणाम करता हूँ।
महाराज – सिद्धार्थ, देवदत्त कहता है कि तुमने उसका हंस छीना है। क्या यह ठीक है? यह जो हंस तुम्हारी गोद में है, क्या यह वही हंस है?
सिद्धार्थ – जी महाराज, वही है।
महाराज – क्या यह देवदत्त का है?
सिद्धार्थ – जी नहीं, यह मेरा है।
देवदत्त – महाराज, यह हंस मेरा है। इसको मेरा तीर लगा है।
महाराज – शांत देवदत्त, क्रोध मत करो। तुम कहते हो कि यह हंस तुम्हारा है क्योंकि तुमने इसका आखेट किया है।
देवदत्त – जी महाराज !
महाराज – क्यों सिद्धार्थ, देवदत्त ठीक कहता है?
सिद्धार्थ – जी महाराज, हंस का आखेट देवदत्त ने किया है।
महाराज – तो फिर तुम कैसे कहते हो कि यह हंस तुम्हारा है?
सिद्धार्थ – महाराज, देवदत्त ने हंस को मारा है परंतु मैंने उसे बचाया है। बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है ।
(सभा में हर्ष-ध्वनि)
महाराज – पर सिद्धार्थ, वीर अपना आखेट नहीं छोड़ सकता।
सिद्धार्थ – ठीक है महाराज! वीर अपना आखेट नहीं छोड़ सकता परंतु वीर शरणागत को भी नहीं छोड़ सकता। हंस मेरी शरण में आ चुका है। मैं उसे नहीं लौटाऊँगा ।
(सभा में फिर हर्ष उमड़ता है। राजकुमार शांत मन से हंस को सहलाते रहते हैं। महाराज की आँखों में स्नेहपूरित गर्व है। देवदत्त तिलमिलाता है।)
देवदत्त – महाराज! मैंने पहले हंस को मारा है इसलिए वह मेरा है।
सिद्धार्थ – पहले मारा था, तभी तो वह मेरी शरण में आया है। बिना मारे वह मेरी शरण में कैसे आता?
(सब लोग स्तंभित होकर एक-दूसरे को देखते हैं।)
महाराज – मंत्री जी! समस्या जटिल है। आप कुछ रास्ता सुझा सकते हैं?
मंत्री – महाराज! समस्या बड़ी आसान है। मुझे आज्ञा दें तो मैं अभी इसका निर्णय किए देता हूँ।
महाराज – (हर्षित होकर) नेकी और पूछ-पूछ! मंत्री जी, यही तो हम चाहते हैं। मंत्री तो अभी देखिए
महाराज! – (मुड़कर) कुमार देवदत्त ! तुम कहते हो कि हंस तुम्हारा है?
देवदत्त – जी हाँ, हंस मेरा है। मैंने उसे तीर मारकर गिराया है।
मंत्री – ठीक है। राजकुमार सिद्धार्थ! तुम कहते हो कि हंस तुम्हारा है?
सिद्धार्थ – जी मंत्री जी, मैंने उसे बचाया है।
मंत्री – ठीक है। राजकुमार, तुम हंस को यहाँ इस आसन पर बैठा दो ।
सिद्धार्थ – जी, बैठाता हूँ।
न्याय Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 9 4
(राजकुमार आगे बढ़कर हंस को आसन पर बैठा देते हैं। हंस फड़फड़ाता है। राजकुमार उसे पुचकारते हैं।)
सिद्धार्थ – डरो नहीं मित्र! तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। मैं यहीं हूँ।
(पीछे हट जाते हैं।)
मंत्री – कुमार देवदत्त! हंस यहाँ आसन पर बैठा है। तुम इसे बुलाओ तो!
(सभा अचरज से भरकर देवदत्त को देखती है। वह आगे बढ़कर हंस को पुचकारता है।)
देवदत्त – (पुचकारकर) आओ… मेरे पास आओ।
(पक्षी डरकर फड़फड़ाता और चीखता है।)
मंत्री – कुमार देवदत्त! हंस तुम्हारे पास नहीं आना चाहता। राजकुमार सिद्धार्थ! अब तुम्हारी बारी है। तुम बुलाओ।
(देवदत्त मुँह लटकाए पीछे हटते हैं और सिद्धार्थ आगे बढ़ते हैं। सभा स्तंभित है।)
सिद्धार्थ – (प्यार से) आओ मित्र ! मेरी गोद में आ जाओ।
(सिद्धार्थ के कंठ से स्नेहपूरित शब्द निकलते ही हंस एकदम उड़कर उनकी गोद में आ चिपकता है। महाराज के नेत्र सजल हो जाते हैं। मंत्री गंभीर स्वर में कहते हैं—)
मंत्री – देखिए महाराज! पक्षी ने अपने आप इस प्रश्न का निर्णय कर दिया है। वह राजकुमार सिद्धार्थ के पास रहना चाहता है। वह उन्हीं को मिले।
महाराज – मंत्रिवर! हमें तुम्हारा निर्णय स्वीकार है। हम आज्ञा देते हैं कि हंस राजकुमार सिद्धार्थ के पास रहे।
(सभा हर्ष और उल्लास से जय-जयकार करती है। राजकुमार सिद्धार्थ प्रेम से हंस को छाती से चिपकाते हैं। देवदत्त गरदन झुका लेता है। महाराज और मंत्री हर्ष से मुस्कुराते हैं। परदा धीरे-धीरे गिरने लगता है। राजकुमार जाते दिखाई देते हैं। हंस उनकी गोद में ऐसे चिपका है जैसे बच्चा माँ की गोद में चिपक जाता है। परदा पूरा गिर जाता है।)

– विष्णु प्रभाकर

शिक्षण-संकेत – कक्षा को चार समूहों में विभाजित करके सभी समूहों से इस नाटक का मंचन करवाएँ। सदस्य, पात्रों के अनुसार अपनी वेशभूषा में कुछ परिवर्तन कर सकते हैं। नाटक के पात्र संवादों को अपनी स्थानीय भाषा में भी बोल सकते हैं।

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