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हमारे ये कलामंदिर Class 5 Summary in Hindi
हमारे ये कलामंदिर Class 5 Hindi Summary
हमारे ये कलामंदिर का सारांश – हमारे ये कलामंदिर Class 5 Summary in Hindi
दशहरे की छुट्टियों में निशा और उसकी मौसी ने अजंता और एलोरा जाने की योजना बनाई। वे बस से अजंता की ओर चल पड़े जो वहाँ से लगभग सौ किलोमीटर दूर था । वहाँ का दृश्य बहुत ही सुंदर था। वहीं एक ओर छोटी-सी नदी बह रही थी।
उसके दक्षिण में एक पहाड़ी पर 29 गुफाएँ थीं। इनके ठीक नीचे एक कुंड बना हुआ था। गुफाओं के अंदर दीवारों पर सुंदर चित्र बने हुए थे। गौतम बुद्ध, पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों आदि के सजीव चित्र वहाँ मौजूद थे। उन सभी में सुंदर रंग भरे थे।
आश्चर्य की बात यह थी कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी ये रंग फीके नहीं पड़े थे। ये गुफाएँ लगभग दो हज़ार वर्ष पुरानी हैं। इन्हें लंबी-चौड़ी गुफाओं को काटकर बनाया गया था। ये गुफाएँ देखकर वे दोनों संभाजी नगर लौट गईं। वहाँ से अगले दिन 40 किलोमीटर दूर वे एलोरा पहुँचीं। वहाँ पहाड़ों को काटकर लगभग तीस मंदिर बनाए गए हैं। मंदिर में उपस्थित मूर्तियाँ बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म से संबंधित थीं । विशाल शिलाओं को तराशकर ये मूर्तियाँ गढ़ी गई थीं । निशा को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि हजारों वर्ष पहले भी हमारे देश में कला का इतना विकास हो चुका था।
हमारे ये कलामंदिर शब्दार्थ –
उत्सुकता – अत्यधिक इच्छुक,
विश्रामगृह – आराम करने का स्थान,
मनोरम – सुंदर,
शिलाखंड – चट्टान का टुकड़ा,
कुंड – हौज,
सजीव – जीवित,
हाथों की मुद्रा – हाथों की विशेष आकृति,
लोच – लचक,
तराशना – काटना/कतरना,
कलाकृति – कला के माध्यम से बनाई गई वस्तु या चित्र |
मुहावरा – टकटकी लगाना – लगातार देखना ।
Class 5 Hindi Chapter 11 Summary हमारे ये कलामंदिर
इस बार निशा की मौसी ने छुट्टियों में उसे अजंता और एलोरा दिखाने का वादा किया था। निशा ने पुस्तकों में अजंता, एलोरा के बारे में पढ़ा था। तभी से उसके मन में उत्सुकता थी कि ये गुफाएँ देखने में कैसी होंगी।
दशहरे की छुट्टियाँ आईं तो उनका अजंता और एलोरा जाने का कार्यक्रम बन गया। रेलगाड़ी में आरक्षण छत्रपति संभाजीनगर तक था। संभाजीनगर महाराष्ट्र राज्य का एक नगर है। संभाजीनगर पहुँचते-पहुँचते रात हो गई। निशा और मौसी ने स्टेशन पर ही विश्रामगृह में रात बिताई। दूसरे दिन बड़े सवेरे ही उठकर वे बस से अजंता की ओर चल दीं। वहाँ से अजंता लगभग सौ किलोमीटर दर है। दूर है।”
अजंता पहुँचकर जो दृश्य निशा ने देखा, वह बड़ा ही मनोरम था। एक ओर छोटी-सी नदी बह रही थी। नदी में बड़े-बड़े शिलाखंड पड़े थे। नदी के दक्षिण में एक पहाड़ी पर एक पंक्ति में उनतीस गुफाएँ थीं। इन गुफाओं का मुँह पूर्व दिशा की ओर होने के कारण प्रातःकाल के सूर्य की किरणें इन पर पड़ रही थीं। गुफा के ठीक नीचे एक कुंड बना था जिसमें पानी भरा हुआ था। घाटी में रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे।
निशा, मौसी के साथ गुफाओं को देखने के लिए अंदर गई। उन्होंने देखा कि गुफाओं के अंदर दीवारों पर अत्यंत सुंदर चित्र बने हैं। गौतम का घर छोड़कर तप के लिए जाना, भिक्षुओं को उपदेश देना, साधु के रूप में भिक्षा माँगने जाना आदि के चित्र अत्यंत सजीव थे।
इसके अतिरिक्त पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, स्त्रियों आदि के भी चित्र थे। उन्हें देखते ही निशा के मुँह से निकला, “वाह!” उन सभी चित्रों में अत्यंत सुंदर रंग भरे थे। सैकड़ों साल बीत जाने पर भी ये रंग फीके नहीं पड़े थे। मौसी ने कहा, “निशा, ये गुफाएँ दो हजार वर्ष पुरानी हैं।”
निशा ने आश्चर्यचकित होकर कहा, “दो हजार वर्ष ! पर आज भी इनके रंग ज्यों के त्यों कैसे हैं?”
मौसी ने कहा, “उस समय रंग बनाने का ढंग बहुत अनोखा था। कहते हैं कि उस समय ये रंग पत्तों, जड़ी-बूटियों, फूलों आदि से बनाए जाते थे।”
निशा टकटकी लगाए चित्रों को देखती रही। चित्रों में हाथों की मुद्रा, आँखों के भाव, अंगों की लोच, मुखों पर सुख-दुख के भाव तथा झुर्रियाँ सभी कुछ अत्यंत अद्भुत था। ऐसे सजीव चित्र थे कि लगता था अभी बोल पड़ेंगे।
कुछ गुफाएँ अत्यंत लंबी-चौड़ी थीं, कुछ छोटी । निशा को सबसे अधिक आश्चर्य यह देखकर हुआ कि ये गुफाएँ पहाड़ों को ही काटकर बनाई गई थीं। इन गुफाओं में बनी मूर्तियाँ भी पत्थरों को तराशकर बनाई गई थीं।
अजंता की गुफाएँ देखकर निशा और मौसी वापस संभाजीनगर आ गईं। वहाँ से वे दूसरे दिन बस में बैठकर एलोरा की गुफाएँ देखने गईं। संभाजीनगर से एलोरा लगभग चालीस किलोमीटर दर है।
एलोरा पहुँचकर निशा ने देखा कि पहाड़ों को ही काटकर लगभग तीस मंदिर बनाए गए हैं। इन मंदिरों में बहुत ही सुंदर मूर्तियाँ देखने को मिलीं। ये मूर्तियाँ केवल बौद्ध धर्म से ही संबंधित नहीं थीं, बल्कि इनमें से कुछ हिंदू और जैन धर्म से भी संबंधित थीं।
इन मूर्तियों की कारीगरी देखते ही बनती थी। बड़ी-बड़ी विशाल शिलाओं को तराशकर इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें तथा मूर्तियाँ गढ़ी गई थीं। निशा उन्हें देख-देखकर चकित हो रही थी। कैलाश मंदिर दिखाते हुए मौसी जी ने कहा “निशा, यह अत्यंत प्रसिद्ध मंदिर है। पूरा मंदिर एक ऊँचे पहाड़ को ऊपर की ओर से तराशकर बनाया गया है। देखो, एक ही चट्टान से बनी इतनी बड़ी और सुंदर इमारत कितनी अद्भुत है !”
निशा – “अद्भुत ! यह गर्व की बात है कि हजारों वर्ष पहले भी हमारे देश में कला का इतना विकास हो चुका था।”
अजंता और एलोरा देखकर निशा और मौसी जी वापस लौट आए पर निशा का मन अभी भी उन बेजोड़ कलाकृतियों की ओर लगा था।
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